उस रात बूढ़े मां बाप के सहारे के साथ दो बच्चियों की उम्मीदें भी जल कर हुईं खाक
बारा में बिजली गिरने से चार लोगों की हुई थी मौत
स्पॉट रिपोर्ट
प्रयागराज । प्रयागराज के बारा क्षेत्र के सोनवर्षा गांव के हल्लाबोर में सोमवार को वीरेंद्र उनकी पत्नी पार्वती और उनके दो बच्चियों का अंतिम संस्कार कर दिया गया। गौरतलब है कि जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर शंकरगढ़ की पहाड़ियों पर वास सोनबरसा गांव के हल्लाबोर पुरवा में मुसहर जाति के वीरेंद्र आदिवासी उनकी पत्नी पार्वती और उनकी दो बच्चियों की शनिवार और रविवार की दरमियानी रात झोपडी पर बिजली गिरने से लगी आग में जलकर मौत हो गई थी। दो बच्चियों सोन कुमारी और आंचल के अपनी दादी के पास होने की वजह से वह बच गई थी। ढाक के पौधे से पत्तल बनाने का काम करने वाले वीरेंद्र और उनके परिवार की रोज की कमाई 100 से 200 रुपए तक थी। तैयार हुए पत्तल को वह पास के इलाकों तक बिक्री के लिए ले जाता था और मिले हुए पैसों से ही उसका घर चला था। कमाई इतनी कम थी कि पूरा परिवार झोपडी में रहने को मजबूर था। घर के कमाऊ पूत के चले जाने से वीरेंद्र की मां छोटी के माथे पर भविष्य की चिंता साफ देखी जा सकती है।सोमवार को सुबह आठ बजे हल्लाबोर से दो किलोमीटर दूर लोगो ने उनके शव को दफना दिया। वीरेंद्र की माता छोटी देवी अभी भी जली हुई झोपड़ी के पास पत्थर हुई आंखों से आने जाने लोगों को निहार रही है। वीरेंद्र की दो बची हुई बेटियों सोनकुमारी और आंचल के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि वह पास के जंगल में चूल्हे के लिए लकड़ी इकट्ठा करने गई है। इससे बड़ी त्रासदी क्या हो सकती है कि जिनके मां-बाप और दो बहनों के शव अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया हो। वह बच्ची चूल्हे के लिए जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने गई है। शोक की इस घड़ी में गांव के आदिवासी समुदाय की तमाम महिलाएं वीरेंद्र के घर के सामने जुटी हुई गांव में करीब सौ आदिवासी परिवार के रहने के बावजूद कुछ ही लोगों को पक्के आवास प्रदान किए गए हैं। वृद्धावस्था पेंशन पाने के बावजूद वीरेंद्र की मां छोटी को आधार से पैसा निकालने वाला उन्हें प्रति माह केवल तीन सौ ही देता है। घर में लगी आग से वीरेंद्र की दोनों बेटियों सोनकुमारी और आंचल के स्कूल बैग भी जलकर खाक हो गए। गरीबी और मुफलिसी की मार इतनी है कि उन्हें दो वक्त की है भोजन के लिए दूसरों के घरों में काम करने के लिए भी जाना पड़ता है। केंद्र और राज्य सरकार की तमाम लोक कल्याणकारी योजनाएं वीरेंद्र के दरवाजे पर कैसे दम तोड़ रही हैं। यह इन लोगों को देखने पर पता चलता है। छोटी देवी को अब अपनी दो नातिन सोनकुमारी और आंचल के भविष्य की चिंता है अब उनका इस दुनिया में कोई नहीं है। सोनकुमारी और आंचल कहती है पापा के साथ ही साइकिल भी आग में जल गई। अब स्कूल कैसे जाएंगी।















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