रवीन्द्रनाथ ठाकुर रचित नृत्य-नाटिका "भानुसिंघेर पदाबली" का किया गया सफल मंचन
प्रयागराज। भानुसिंघेर पदाबली" की रचना कविगुरु ने मात्र 16 वर्ष की आयु में "भानुसिंह" उपनाम से की थी। वैष्णव कवियों की परंपरा से प्रेरित होकर उन्होंने मैथिली और बंगला के सम्मिश्रण से बनी ब्रेजबुली भाषा में इन पदों की रचना की। इसमें राधा-कृष्ण के प्रेम के माध्यम से ईश्वरीय प्रेम, प्रकृति और मानवीय संवेदनाओं का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत होता है। रवींद्रालय, जगत तारन गोल्डन जुबिली कैंपस में शनिवार को किया गया।
यह आयोजन मूलतः 8 अगस्त को कविगुरु ठाकुर के प्रयाण दिवस पर उनकी स्मृति में श्रद्धांजलि स्वरूप होना था, किंतु प्रयागराज में जलभराव की वजह से इसे स्थगित कर शनिवार को सम्पन हुआ। इए नृत्य नाटिका का आयोजन पूर्णिमा सम्मेलनी के माध्यम से हुआ। पूर्णिमा सम्मेलनी संस्था वर्ष 1927 में हुई थी और यह प्रयागराज की सबसे प्राचीन बंगाली संस्था है। संस्था का उद्देश्य बंगाल के बाहर बंगाली साहित्य और संस्कृति को जीवित रखना तथा सामाजिक कार्यों में सक्रिय भागीदारी निभाना है। इस नृत्य-नाटिका का निर्देशन अर्नबी बनर्जी ने किया, जबकि विषय चयन शर्मीला चटर्जी का था। लेख भी अर्नबी बनर्जी द्वारा और पाठ बेला मित्तल, शर्मीला चटर्जी व अर्नबी बनर्जी ने किया।
गायन में उदय चंद्र परदेसी, जयदीप गांगुली, पारिजात चौधरी, शर्मीला चटर्जी, डॉ. रमा गांगुली मंत्रोंस, संगीता राय भारद्वाज, चंदना घोष, श्रीमती ईशानी बनर्जी, कुमारी शालिनी गांगुली, प्रणामी बोस और शुभ्रा घोष शामिल रहे। नृत्य निर्देशन कुमारी सायोनी भट्टाचार्य द्वारा किया गया। नृत्य कलाकारों में अर्नबी बनर्जी, सायोनी भट्टाचार्य, अहोना भट्टाचार्य, आंशिक शुक्ला, सानवी बोस, शुभी मिश्रा, अंतर केसरवानी, पूर्वी केसरवानी, शांभवी श्रीवास्तव, अर्पिता सिंह, शिवालिका परिहार, यशस्वी मिश्रा, आख्या, नित्या तिवारी और नंदिनी तिवारी शामिल रहीं।
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